Wednesday, July 16, 2025
More
    Homeधर्म / आध्यात्ममुहर्रम 2025: जानें तारीख और क्यों है यह गम का महीना

    मुहर्रम 2025: जानें तारीख और क्यों है यह गम का महीना

    - Advertisement -

    मुहर्रम 2025: जानें तारीख और क्यों है यह गम का महीना

    मुहर्रम 2025 की तारीख को लेकर अक्सर लोगों में भ्रम होता है। यह इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है। इसी महीने से इस्लामी नया साल शुरू होता है। लेकिन वास्तव में, यह महीना जश्न का नहीं, बल्कि गम और मातम का है। इसका संबंध कर्बला की ऐतिहासिक घटना से है। इसलिए, इसका विशेष महत्व है।

    इस्लामी कैलेंडर चंद्रमा पर आधारित होता है। इस कारण, मुहर्रम महीने की शुरुआत चाँद दिखने पर निर्भर करती है। यह महीना शिया मुस्लिम समुदाय के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसमें वे इमाम हुसैन की शहादत का शोक मनाते हैं। आइये, इस लेख में मुहर्रम 2025 की तारीख और महत्व को समझते हैं।

    मुहर्रम 2025 की संभावित तारीख

    इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, साल 2025 में इस्लामी नव वर्ष 1447 हिजरी की शुरुआत होगी। मुहर्रम का चाँद दिखने के बाद ही सही तारीख तय होती है।

    • इस्लामी नया साल (1 मुहर्रम) 1447: 29 जून, 2025 (रविवार) को शुरू होने की उम्मीद है।
    • आशूरा (10 मुहर्रम): 8 जुलाई, 2025 (मंगलवार) को हो सकता है।

    हालांकि, अंतिम तारीख हमेशा चाँद के दीदार के बाद ही घोषित की जाती है। इस कारण, इसमें एक दिन का अंतर संभव है।

    महत्वपूर्ण: यह तारीखें अनुमानित हैं। सही तारीख का ऐलान रुअत-ए-हिलाल कमेटी (चाँद देखने वाली समिति) द्वारा किया जाएगा।

    मुहर्रम 2025

    क्यों है मुहर्रम गम का महीना?

    मुहर्रम को मातम का महीना कहा जाता है। इसका मुख्य कारण कर्बला की जंग है। यह घटना इस्लाम के इतिहास में बहुत दर्दनाक मानी जाती है। इसमें पैगंबर मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। इसलिए, मुस्लिम समुदाय इस महीने को शोक के रूप में मनाता है।

    कर्बला की ऐतिहासिक घटना

    यह घटना आज से लगभग 1400 साल पहले की है। उस समय यजीद नाम का एक अत्याचारी शासक था। वह चाहता था कि इमाम हुसैन उसकी सत्ता स्वीकार कर लें। लेकिन वास्तव में, इमाम हुसैन अन्याय के खिलाफ थे। उन्होंने यजीद की बात मानने से इनकार कर दिया।

    इस कारण, यजीद ने इमाम हुसैन और उनके परिवार को कर्बला के मैदान में घेर लिया। यह स्थान आज के इराक में है। वहां कई दिनों तक उन्हें भूखा-प्यासा रखा गया। अंततः, मुहर्रम की 10वीं तारीख को इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों को शहीद कर दिया गया। इसी दिन को ‘आशूरा’ कहते हैं।

    क्या है यौम-ए-आशूरा?

    आशूरा मुहर्रम महीने का दसवां दिन है। यह दिन इमाम हुसैन की शहादत को समर्पित है। शिया समुदाय के लोग इस दिन काले कपड़े पहनते हैं। वे मातम मनाते हैं और जुलूस निकालते हैं। इन जुलूसों को ताजिया कहा जाता है।

    इसके अलावा, सुन्नी समुदाय के लोग इस दिन रोजा (व्रत) रखते हैं। उनका मानना है कि इस दिन पैगंबर मूसा को फिरौन पर जीत मिली थी। हालांकि, दोनों ही समुदाय इस दिन को पवित्र मानते हैं।

    ताजिया का महत्व

    ताजिया इमाम हुसैन के मकबरे (रौजा) का एक प्रतीकात्मक रूप होता है। इसे बांस और रंगीन कागज से बनाया जाता है। आशूरा के दिन लोग ताजिया के साथ जुलूस निकालते हैं। वे “या हुसैन” के नारे लगाते हुए अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। अंत में, इन ताजियों को कर्बला में दफन कर दिया जाता है। यह परंपरा भारत समेत कई देशों में प्रचलित है। विभिन्न इस्लामिक त्योहारों की जानकारी के लिए आप ईद-उल-अजहा के बारे में भी पढ़ सकते हैं।

    मुहर्रम हमें सिखाता है कि अन्याय के खिलाफ हमेशा आवाज उठानी चाहिए। यह महीना त्याग, बलिदान और सत्य के लिए खड़े होने का संदेश देता है। आप इस्लाम के इतिहास के बारे में अधिक जानकारी विश्वसनीय स्रोतों से प्राप्त कर सकते हैं।

    RELATED ARTICLES

    LEAVE A REPLY

    Please enter your comment!
    Please enter your name here

    - Advertisment -

    Most Popular

    Recent Comments