सर्वाइकल कैंसर जांच में सेल्फ-कलेक्शन की भूमिका, स्क्रीनिंग दर बढ़ाने की नई उम्मीद
सर्वाइकल कैंसर यानी गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर महिलाओं में होने वाली एक गंभीर बीमारी है। भारत में हर साल हजारों महिलाएं इसकी वजह से जान गंवाती हैं। हालांकि, समय पर जांच से इसे रोका जा सकता है। अब, सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग के लिए एक नई और आसान विधि सामने आई है। इसे ‘सेल्फ-कलेक्शन’ या ‘स्व-संग्रह’ कहा जाता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह तरीका जांच की दर को काफी हद तक बढ़ा सकता है।
यह विधि उन महिलाओं के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है जो संकोच करती हैं। या फिर जिनके पास स्वास्थ्य केंद्र जाने का समय नहीं होता। इसलिए, HPV सेल्फ-सैंपलिंग को भविष्य में एक बड़े बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है। यह जांच प्रक्रिया को आसान और सुलभ बनाती है।
क्या है HPV सेल्फ-कलेक्शन?
घर पर जांच की आसान प्रक्रिया
HPV सेल्फ-कलेक्शन एक बहुत ही सरल प्रक्रिया है। इसमें महिलाओं को एक विशेष किट दी जाती है। इस किट की मदद से वे घर पर ही अपनी योनि (vagina) से सैंपल ले सकती हैं। इसके लिए किसी डॉक्टर या नर्स की जरूरत नहीं होती। यह पूरी तरह से निजी और आरामदायक होता है।
सैंपल लेने के बाद, उसे एक सीलबंद ट्यूब में रखकर लैब में भेजना होता है। लैब में इस सैंपल की जांच ह्यूमन पैपिलोमावायरस (HPV) के लिए की जाती है। दरअसल, HPV ही लगभग 99% सर्वाइकल कैंसर का मुख्य कारण होता है। यह प्रक्रिया पारंपरिक पैप स्मीयर टेस्ट से अलग है। लेकिन वास्तव में, यह उतनी ही प्रभावी साबित हो रही है।
स्क्रीनिंग दर बढ़ाने में यह क्यों है प्रभावी?
सामाजिक और व्यक्तिगत बाधाओं का समाधान
भारत में सर्वाइकल कैंसर स्क्रीनिंग की दर बहुत कम है। इसके पीछे कई सामाजिक और व्यक्तिगत कारण हैं। कई महिलाएं पुरुष डॉक्टर से जांच कराने में झिझकती हैं। वहीं, कुछ को अस्पताल जाने में डर लगता है। सेल्फ-कलेक्शन इन सभी बाधाओं को दूर करता है।
झिझक और निजता की सुरक्षा
यह तरीका महिलाओं को पूरी निजता प्रदान करता है। वे अपने घर के आरामदायक माहौल में सैंपल ले सकती हैं। इस कारण, जांच को लेकर उनकी झिझक खत्म हो जाती है। यह उन ग्रामीण क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहां महिला स्वास्थ्यकर्मियों की कमी है। अंततः, इससे अधिक महिलाएं जांच के लिए आगे आएंगी।
समय और पहुंच की समस्या का हल
शहरी क्षेत्रों में कई कामकाजी महिलाओं के पास क्लिनिक जाने का समय नहीं होता। इसके अलावा, दूर-दराज के इलाकों में स्वास्थ्य केंद्रों की पहुंच एक बड़ी चुनौती है। सेल्फ-कलेक्शन किट इन दोनों समस्याओं का प्रभावी समाधान है। इसे आसानी से घर तक पहुंचाया जा सकता है। इसलिए, यह जांच को हर महिला की पहुंच में लाता है।
कितना सटीक और भरोसेमंद है यह तरीका?
वैज्ञानिक अध्ययनों में साबित हुई सटीकता
अब सवाल उठता है कि क्या यह तरीका भरोसेमंद है? दुनिया भर में हुए कई अध्ययनों ने इसकी सटीकता को साबित किया है। शोध से पता चला ہے कि HPV का पता लगाने में सेल्फ-कलेक्शन उतना ही प्रभावी है, जितना डॉक्टर द्वारा लिया गया सैंपल। दोनों तरीकों के परिणामों में कोई खास अंतर नहीं पाया गया है।
हालांकि, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि सेल्फ-कलेक्शन HPV की जांच करता है। यह सीधे कैंसर कोशिकाओं का पता नहीं लगाता। यदि किसी महिला की HPV रिपोर्ट पॉजिटिव आती है, तो उसे आगे की जांच के लिए डॉक्टर के पास जाना पड़ता है। उदाहरण के लिए, इसके बाद पैप स्मीयर या कोल्पोस्कोपी की सलाह दी जा सकती है।
सेल्फ-कलेक्शन के भारत के लिए इसके क्या मायने हैं?
सेल्फ-कलेक्शन सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा कदम
भारत जैसे विशाल देश के लिए सेल्फ-कलेक्शन एक क्रांतिकारी कदम हो सकता है। यह हमारी स्वास्थ्य प्रणाली पर बोझ कम कर सकता है। साथ ही, यह स्क्रीनिंग कवरेज को दूर-दराज के गांवों तक बढ़ा सकता है। सरकार और स्वास्थ्य संगठन इस तकनीक को राष्ट्रीय स्क्रीनिंग कार्यक्रम में शामिल करने पर विचार कर सकते हैं।
यदि इस विधि को सही तरीके से लागू किया जाए, तो यह तस्वीर बदल सकती है। जागरूकता अभियान चलाना और किट की आसान उपलब्धता सुनिश्चित करना जरूरी होगा। इसके अलावा, पॉजिटिव मामलों के लिए एक मजबूत फॉलो-अप सिस्टम बनाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। अंततः, इसका लक्ष्य सर्वाइकल कैंसर से होने वाली मौतों को रोकना है। यह तभी संभव है जब जांच और इलाज दोनों सुलभ हों।