कलकत्ता हाईकोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से ट्रांसजेंडर समुदाय को मिली बड़ी राहत
कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। यह फैसला लैंगिक समानता की दिशा में एक मील का पत्थर है। अदालत ने स्पष्ट किया कि ट्रांसजेंडर पहचान पत्र पासपोर्ट बनवाने के लिए एक वैध दस्तावेज है। इसलिए, अब पासपोर्ट अधिकारी इस पहचान पत्र को स्वीकार करने से इनकार नहीं कर सकते। यह आदेश एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति की याचिका पर आया है। याचिका में पासपोर्ट कार्यालय की मनमानी को चुनौती दी गई थी।
इस फैसले से ट्रांसजेंडर समुदाय को बड़ी राहत मिली है। इसके अलावा, यह लैंगिक पहचान से जुड़े कानूनी अधिकारों को मजबूती देता है। वास्तव में, यह निर्णय पासपोर्ट नियमों से ऊपर व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को रखता है। अदालत का यह कदम थर्ड जेंडर के व्यक्तियों के लिए सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करेगा।
ट्रांसजेंडर का क्या था पूरा मामला?
यह मामला एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति से जुड़ा है। उन्होंने पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था। उन्होंने अपनी लैंगिक पहचान के प्रमाण के तौर पर ट्रांसजेंडर पहचान पत्र जमा किया। हालांकि, कोलकाता के क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय ने उनके आवेदन को खारिज कर दिया।
पासपोर्ट कार्यालय ने आवेदक से कई अन्य दस्तावेज मांगे। उदाहरण के लिए, उनसे संशोधित जन्म प्रमाण पत्र मांगा गया। इसके अलावा, लिंग परिवर्तन की पुष्टि के लिए अदालती आदेश की भी मांग की गई। इस कारण, याचिकाकर्ता ने इसे उत्पीड़न और भेदभावपूर्ण बताया। अंततः, उन्होंने न्याय के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
अदालत की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ और निर्देश
न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य की एकल पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। उन्होंने याचिकाकर्ता के तर्कों को सही माना। अदालत ने कहा कि पासपोर्ट कार्यालय की मांग पूरी तरह से अनुचित थी।
आत्म-पहचान के अधिकार को मान्यता
अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति को अपनी लैंगिक पहचान खुद तय करने का पूरा अधिकार है। यह एक मौलिक अधिकार है। इसके लिए किसी अतिरिक्त प्रमाण पत्र या अदालती आदेश की जरूरत नहीं है। यदि किसी व्यक्ति के पास ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत जारी पहचान पत्र है, तो वह पर्याप्त है।
वास्तव में, यह अधिनियम एक विशेष कानून है। यह लैंगिक पहचान से जुड़े मामलों में सामान्य कानूनों पर वरीयता रखता है। इसलिए, पासपोर्ट अधिनियम के नियम इस पर हावी नहीं हो सकते। यह आदेश नालसा बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के अनुरूप है।
पासपोर्ट कार्यालय को सख्त निर्देश
न्यायमूर्ति भट्टाचार्य ने क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय को स्पष्ट निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के आवेदन पर चार सप्ताह के भीतर कार्रवाई की जाए। अदालत ने यह भी साफ किया कि पासपोर्ट केवल ट्रांसजेंडर पहचान पत्र के आधार पर जारी किया जाना चाहिए। इस कारण, अब पासपोर्ट कार्यालय कोई और दस्तावेज नहीं मांग सकता।
इस फैसले का क्या असर होगा?
यह फैसला सिर्फ एक व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि पूरे ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक बड़ी जीत है। यह देश भर में एक मिसाल कायम करेगा। अब किसी भी ट्रांसजेंडर व्यक्ति को पासपोर्ट के लिए अनावश्यक परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा।
इसके अलावा, यह निर्णय सरकारी अधिकारियों को संवेदनशील बनाएगा। उन्हें ट्रांसजेंडर समुदाय के कानूनी अधिकारों का सम्मान करना होगा। यह फैसला समानता और सम्मान के अधिकार को मजबूत करता है। कानूनी जानकारों का मानना है कि इससे भविष्य में समानता के अधिकारों से जुड़े अन्य मामलों को भी दिशा मिलेगी। अंततः, यह एक प्रगतिशील समाज की नींव को और पक्का करता है।