Sunday, July 6, 2025
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    हरियाणा आरटीआई मामला: 40,000 पेज भी नाकाफी

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    हरियाणा आरटीआई मामला: 40,000 पेज भी नाकाफी

    हरियाणा में सूचना के अधिकार (RTI) से जुड़ा एक अनोखा मामला सामने आया है। यहां राज्य के टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग ने एक आवेदक को 40,000 पेज के दस्तावेज सौंपे हैं। लेकिन वास्तव में, आवेदक ने इस जानकारी को अधूरा और अपर्याप्त बताया है। इस कारण, यह पूरा हरियाणा आरटीआई मामला अब चर्चा का विषय बन गया है।

    यह मामला RTI कानून के क्रियान्वयन पर गंभीर सवाल खड़े करता है। आवेदक का कहना है कि उन्हें दस्तावेजों का ढेर दिया गया है। हालांकि, मांगी गई पूरी जानकारी इसमें शामिल नहीं है। यह घटना दिखाती है कि केवल दस्तावेज देना ही काफी नहीं होता।

    क्या है यह पूरा मामला?

    यह मामला आरटीआई आवेदक संदीप सिंह से जुड़ा है। उन्होंने विभाग से एक विस्तृत जानकारी मांगी थी। उन्होंने पिछले 20 वर्षों में विकसित सभी रिहायशी और कमर्शियल कॉलोनियों का ब्योरा मांगा था। इसके अलावा, उन्होंने लाइसेंस, डेवलपर और सुविधाओं की जानकारी भी मांगी थी।

    इसके जवाब में विभाग ने उन्हें करीब 40,000 पेज के दस्तावेज उपलब्ध कराए। विभाग का दावा है कि यह पूरी उपलब्ध जानकारी है। हालांकि, आवेदक इस जवाब से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं है। इसलिए, उन्होंने इस पर आपत्ति जताई है।

    आवेदक ने क्यों बताई जानकारी अधूरी?

    संदीप सिंह के अनुसार, दिए गए दस्तावेज पूरी तरह से अव्यवस्थित हैं। उन्हें जानकारी ढूंढने में भारी मुश्किल हो रही है। इस कारण, उनका उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा है।

    हरियाणा आरटीआई मामला

    आवेदक की मुख्य शिकायतें

    • दस्तावेजों में कई जिलों की जानकारी गायब है।
    • गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे प्रमुख जिलों का डेटा नहीं है।
    • जानकारी को किसी क्रम में व्यवस्थित नहीं किया गया है।
    • आवेदक ने एक खास फॉर्मेट में डेटा मांगा था, जो नहीं मिला।

    उदाहरण के लिए, जानकारी को सिर्फ एक जगह ढेर कर दिया गया है। इससे किसी भी नतीजे पर पहुंचना लगभग असंभव है। अंततः, यह जानकारी किसी काम की नहीं रह जाती।

    “मुझे दस्तावेजों का अंबार दिया गया है, जानकारी नहीं। यह RTI की आत्मा का अपमान है।” – संदीप सिंह, आरटीआई आवेदक

    विभाग का क्या है पक्ष?

    दूसरी ओर, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग का अपना तर्क है। विभाग के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने सभी उपलब्ध दस्तावेज सौंप दिए हैं। उनका मानना है कि उन्होंने RTI के तहत अपनी जिम्मेदारी पूरी की है।

    विभाग का कहना है कि आवेदक द्वारा मांगे गए फॉर्मेट में डेटा तैयार करना एक बहुत बड़ा काम है। इसके लिए विभाग के संसाधनों का गलत इस्तेमाल होगा। यदि आवेदक चाहें तो खुद कार्यालय आकर रिकॉर्ड का निरीक्षण कर सकते हैं। यह विकल्प उन्हें दिया गया था।

    RTI कानून की आत्मा पर सवाल

    यह मामला सूचना के अधिकार कानून की व्याख्या पर एक बड़ी बहस छेड़ता है। सवाल यह है कि क्या जानकारी देने का मतलब केवल फाइलों का ढेर सौंपना है? या फिर जानकारी को सुलभ और समझने योग्य रूप में देना चाहिए? विशेषज्ञ मानते हैं कि जानकारी उपयोगी होनी चाहिए। इस मामले में राज्य सूचना आयोग भी पहले निर्देश दे चुका है।

    यह स्थिति सरकारी विभागों में पारदर्शिता की कमी को भी उजागर करती है। यदि आप भी सूचना के अधिकार का उपयोग करना चाहते हैं, तो आरटीआई आवेदन की प्रक्रिया को समझना महत्वपूर्ण है।

    फिलहाल यह मामला सुलझा नहीं है। यह देखना होगा कि आवेदक को उसकी मांगी गई जानकारी मिलती है या नहीं। अधिक जानकारी के लिए, नागरिक आधिकारिक आरटीआई पोर्टल पर जा सकते हैं।

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