पृष्ठभूमि: एक बयान और उसके गहरे निहितार्थ
प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक हंसल मेहता, जो अपनी बेबाक राय और सामाजिक रूप से प्रासंगिक फिल्मों के लिए जाने जाते हैं, एक बार फिर अपने एक बयान को लेकर चर्चा में हैं। यह बयान उनके बेटे और सिनेमैटोग्राफर प्रतीक शाह पर लगे कथित यौन उत्पीड़न के आरोपों (#MeToo) के संदर्भ में आया है। मेहता ने कहा है कि सत्ता के पदों पर बैठी महिलाएं भी पुरुषों की तरह ही, या कभी-कभी उनसे भी अधिक, नुकसान पहुंचा सकती हैं। यह टिप्पणी उस बहस के बीच आई है जिसमें प्रतीक शाह पर एक महिला असिस्टेंट डायरेक्टर ने अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया था, हालांकि शाह ने इन आरोपों का खंडन किया है।
हंसल मेहता के बयान की गहराई और संदर्भ
हंसल मेहता ने स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणी किसी विशेष व्यक्ति या स्थिति का बचाव नहीं है, न ही यह ‘व्हाटअबाउटरी’ (whataboutery) का प्रयास है। उनका कहना था कि यह एक व्यापक अवलोकन है कि शक्ति किसी को भी भ्रष्ट कर सकती है, चाहे वह पुरुष हो या महिला। उन्होंने जोर देकर कहा कि वह #MeToo आंदोलन के प्रबल समर्थक रहे हैं और रहेंगे, लेकिन उनका मानना है कि सत्ता के दुरुपयोग की संभावना लिंग-तटस्थ होती है।
इस बयान ने एक महत्वपूर्ण चर्चा को जन्म दिया है: क्या समाज, जो ऐतिहासिक रूप से पुरुषों द्वारा सत्ता के दुरुपयोग का साक्षी रहा है, इस तथ्य को स्वीकार करने के लिए तैयार है कि महिलाएं भी सत्ता में आने पर हानिकारक व्यवहार कर सकती हैं? यह एक संवेदनशील मुद्दा है, खासकर #MeToo जैसे आंदोलनों के संदर्भ में, जिनका मुख्य ध्यान पुरुषों द्वारा महिलाओं के उत्पीड़न पर रहा है।
क्या यह #MeToo आंदोलन को कमजोर करता है?
आलोचकों का एक वर्ग यह तर्क दे सकता है कि ऐसे बयान #MeToo आंदोलन के मूल उद्देश्य से ध्यान भटका सकते हैं, जो पीड़ितों को आवाज देने और प्रणालीगत लिंग-आधारित उत्पीड़न को उजागर करने पर केंद्रित है। उनका मानना है कि जब तक महिलाओं के खिलाफ होने वाले व्यापक उत्पीड़न का समाधान नहीं हो जाता, तब तक महिलाओं द्वारा सत्ता के दुरुपयोग की बात करना मुख्य मुद्दे को हल्का कर सकता है।
हालांकि, एक अन्य दृष्टिकोण यह है कि सत्ता के दुरुपयोग की प्रकृति को समझना महत्वपूर्ण है, चाहे अपराधी कोई भी हो। यह स्वीकार करना कि महिलाएं भी सत्ता का गलत इस्तेमाल कर सकती हैं, लैंगिक समानता की लड़ाई को कमजोर नहीं करता, बल्कि यह दर्शाता है कि शक्ति स्वयं एक भ्रष्ट करने वाला तत्व हो सकती है और इसके प्रति सभी को सचेत रहने की आवश्यकता है।
सामाजिक परिप्रेक्ष्य और सत्ता का मनोविज्ञान
मनोवैज्ञानिक रूप से, सत्ता में व्यक्ति के व्यवहार को बदलने की क्षमता होती है। यह उन्हें अधिक आत्म-केंद्रित, कम सहानुभूतिपूर्ण और नियमों को तोड़ने के प्रति अधिक प्रवृत्त बना सकती है। यह प्रभाव लिंग-विशिष्ट नहीं है। समाज में महिलाओं के सत्ता में आने के अवसर बढ़ने के साथ, यह स्वाभाविक है कि सत्ता के दुरुपयोग के कुछ उदाहरण महिलाओं से भी जुड़े हों। इसे स्वीकार करना एक परिपक्व समाज की निशानी है जो जटिल वास्तविकताओं का सामना करने को तैयार है।
हंसल मेहता का बयान हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर रहे हैं जहाँ जवाबदेही सभी के लिए समान हो, लिंग की परवाह किए बिना? क्या हम न्याय की एक ऐसी प्रणाली चाहते हैं जो व्यक्ति के कार्यों पर ध्यान केंद्रित करे, न कि उनके लिंग पर?
बॉलीवुड और कार्यस्थल संस्कृति पर प्रभाव
फिल्म उद्योग, विशेष रूप से बॉलीवुड, अक्सर सत्ता समीकरणों और कार्यस्थल संस्कृति को लेकर चर्चा में रहता है। #MeToo आंदोलन ने इस उद्योग में कई गहरे पैठे मुद्दों को उजागर किया। मेहता का बयान इस बहस में एक और परत जोड़ता है। यह इस बात पर जोर देता है कि एक सुरक्षित और सम्मानजनक कार्यस्थल बनाने के लिए केवल पुरुषों के व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि सत्ता के किसी भी दुरुपयोग के खिलाफ एक व्यापक नीति और संस्कृति विकसित करने की आवश्यकता है।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: किसी भी प्रकार के उत्पीड़न या सत्ता के दुरुपयोग के मामलों में निष्पक्ष जांच और कार्रवाई।
- सशक्तिकरण की सही समझ: महिलाओं का सशक्तिकरण महत्वपूर्ण है, लेकिन यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह शक्ति जिम्मेदारी के साथ आए।
- संरचनात्मक सुधार: ऐसे तंत्र विकसित करना जो सत्ता के केंद्रीकरण और उसके दुरुपयोग को रोकें।
निष्कर्ष: एक विचारोत्तेजक टिप्पणी
हंसल मेहता का बयान, भले ही उनके बेटे से जुड़े विवाद के संदर्भ में आया हो, एक महत्वपूर्ण और विचारोत्तेजक बिंदु प्रस्तुत करता है। यह हमें सत्ता, लिंग और जवाबदेही के जटिल अंतर्संबंधों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करता है। यह कहना कि महिलाएं भी सत्ता का दुरुपयोग कर सकती हैं, महिलाओं की समानता की लड़ाई या #MeToo आंदोलन की वैधता को कम नहीं करता। बल्कि, यह एक अधिक सूक्ष्म और व्यापक समझ की ओर एक कदम हो सकता है कि सत्ता कैसे काम करती है और कैसे किसी भी लिंग का व्यक्ति इसके नकारात्मक प्रभावों का शिकार या वाहक बन सकता है। समाज को इन बहसों को खुले दिमाग से और बिना किसी पूर्वाग्रह के आगे बढ़ाना चाहिए ताकि एक न्यायपूर्ण और समान वातावरण का निर्माण हो सके।