Sunday, June 8, 2025
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    सद्गुरु मानहानि मामला: हाईकोर्ट का कड़ा रुख, मिली सुरक्षा

    नई दिल्ली: आध्यात्मिक गुरु और ईशा फाउंडेशन के संस्थापक, सद्गुरु जग्गी वासुदेव, इन दिनों एक कानूनी लड़ाई को लेकर चर्चा में हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश पारित करते हुए सद्गुरु को एक अमेरिकी नागरिक द्वारा सोशल मीडिया पर फैलाए जा रहे कथित अपमानजनक और मानहानिकारक कंटेंट से सुरक्षा प्रदान की है। यह मामला न केवल एक प्रतिष्ठित व्यक्ति की साख से जुड़ा है, बल्कि डिजिटल युग में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं और ऑनलाइन मानहानि के बढ़ते खतरों पर भी प्रकाश डालता है।

    क्या है पूरा मामला और क्यों पड़ी कोर्ट की शरण?

    सद्गुरु मानहानि मामला
    सद्गुरु

    सद्गुरु जग्गी वासुदेव और ईशा फाउंडेशन ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि अमेरिका में مقیم एक व्यक्ति, जो स्वयं को उनका पूर्व अनुयायी बताता है, विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर उनके, उनकी दिवंगत पत्नी और ईशा फाउंडेशन के कामकाज के बारे में निराधार, दुर्भावनापूर्ण और अपमानजनक टिप्पणियां कर रहा है। याचिका में कहा गया कि यह कंटेंट न केवल उनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को धूमिल कर रहा है, बल्कि फाउंडेशन की गतिविधियों और लाखों अनुयायियों की भावनाओं को भी ठेस पहुंचा रहा है। यह दुष्प्रचार एक सुनियोजित अभियान का हिस्सा प्रतीत होता है, जिसका उद्देश्य सद्गुरु की छवि को खराब करना है।

    न्यायालय का निर्णायक हस्तक्षेप और निर्देश

    मामले की गंभीरता को देखते हुए, न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने प्रथम दृष्टया सद्गुरु के पक्ष में एक मजबूत मामला पाया। न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी द्वारा पोस्ट किया गया कंटेंट आपत्तिजनक और मानहानिकारक प्रकृति का है। इसके परिणामस्वरूप, कोर्ट ने गूगल (यूट्यूब), एक्स (पूर्व में ट्विटर), और मेटा (फेसबुक) जैसे प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों को आदेश दिया कि वे अपने प्लेटफॉर्म से सद्गुरु, उनकी दिवंगत पत्नी और ईशा फाउंडेशन से संबंधित सभी मानहानिकारक वीडियो और पोस्ट्स को तुरंत हटाएं। इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने उक्त अमेरिकी नागरिक को भविष्य में इस तरह का कोई भी अपमानजनक कंटेंट पोस्ट करने से भी रोक दिया है।

    अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम प्रतिष्ठा का अधिकार

    यह मामला एक बार फिर उस पुरानी बहस को सामने लाता है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और किसी व्यक्ति के प्रतिष्ठा के अधिकार के बीच संतुलन स्थापित करने से जुड़ी है। भारतीय संविधान अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है, लेकिन यह अधिकार असीमित नहीं है। अनुच्छेद 19(2) इस पर मानहानि, सार्वजनिक व्यवस्था, और नैतिकता जैसे आधारों पर उचित प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है। न्यायालय ने इस मामले में प्रतिष्ठा के अधिकार को महत्वपूर्ण मानते हुए यह अंतरिम राहत प्रदान की है।

    एक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार के अनुसार, “हाईकोर्ट का यह फैसला ऑनलाइन स्पेस में जवाबदेही तय करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। जहाँ सोशल मीडिया ने विचारों के आदान-प्रदान को सुगम बनाया है, वहीं इसका दुरुपयोग व्यक्तिगत हमलों और चरित्र हनन के लिए भी बढ़ा है। ऐसे में न्यायिक हस्तक्षेप आवश्यक हो जाता है।”

    आदेश का सामाजिक और नीतिगत संदर्भ

    सद्गुरु जैसे वैश्विक स्तर पर पहचाने जाने वाले आध्यात्मिक नेता के मामले में इस तरह का न्यायिक हस्तक्षेप दूरगामी महत्व रखता है। यह दर्शाता है कि भारतीय न्यायपालिका ऑनलाइन मानहानि को गंभीरता से लेती है, भले ही आरोपी व्यक्ति देश के बाहर क्यों न हो। यह आदेश सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की जिम्मेदारी को भी रेखांकित करता है कि वे अपने मंचों का दुरुपयोग न होने दें।

    समाज में, विशेषकर जब कोई व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में होता है, तो उसकी आलोचना और उसके कार्यों की समीक्षा स्वाभाविक है। लेकिन यह आलोचना तथ्यों पर आधारित और मर्यादित होनी चाहिए। जब यह व्यक्तिगत विद्वेष, निराधार आरोपों और चरित्र हनन का रूप ले लेती है, तो यह न केवल व्यक्ति विशेष के लिए हानिकारक होती है, बल्कि समाज में एक नकारात्मक विमर्श को भी जन्म देती है।

    इस प्रकरण से यह स्पष्ट होता है कि डिजिटल युग में अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करना एक बड़ी चुनौती है, लेकिन कानूनी रास्ते अपनाकर न्याय पाना संभव है। यह मामला भविष्य में इसी तरह के अन्य मामलों के लिए एक नजीर बन सकता है, जहाँ ऑनलाइन माध्यमों का इस्तेमाल कर किसी की छवि खराब करने की कोशिश की जाती है।

    मुख्य बिंदु:

    • ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव को दिल्ली हाईकोर्ट से अंतरिम राहत।
    • एक अमेरिकी नागरिक द्वारा लगाए गए अपमानजनक और मानहानिकारक आरोपों के खिलाफ याचिका।
    • न्यायालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को विवादित कंटेंट हटाने का दिया निर्देश।
    • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा के अधिकार के बीच संतुलन पर महत्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप।
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