दुष्यंत दवे ने वकालत छोड़ने का किया ऐलान, कहा- अब प्रासंगिक नहीं रहा
सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने एक बड़ा फैसला लिया है। दुष्यंत दवे ने वकालत छोड़ने का ऐलान कर दिया है। उन्होंने कहा कि वह अब न्याय प्रशासन के लिए प्रासंगिक नहीं रहे। इसलिए, उन्होंने यह कठोर कदम उठाया है। उनका यह बयान कानूनी जगत में चर्चा का विषय बन गया है। इस फैसले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
दवे का यह बयान सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली पर एक गंभीर टिप्पणी है। उन्होंने अपने कानूनी पेशे से संन्यास लेने का मन बना लिया है। इसके अलावा, उन्होंने अपनी निराशा को सार्वजनिक तौर पर व्यक्त किया। यह निर्णय उन्होंने अचानक नहीं लिया है। यह उनकी लंबे समय की पीड़ा का परिणाम लगता है।
क्यों लिया यह चौंकाने वाला फैसला?
यह घोषणा जस्टिस एएस बोपन्ना के विदाई समारोह में हुई। दुष्यंत दवे ने वहां अपने विचार रखे। उन्होंने अपनी निराशा खुलकर जाहिर की। उन्होंने कहा कि अब उनमें पहले जैसी आग नहीं रही। उनका आदर्शवाद भी खत्म हो गया है। इस कारण, उन्होंने कानूनी पेशे से अलविदा कहने का मन बनाया है।
वास्तव में, दवे ने महसूस किया कि वह सिस्टम में कोई बदलाव नहीं ला पा रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैंने बहुत संघर्ष किया, लेकिन मैं असफल रहा।” उनका यह कबूलनामा उनकी गहरी हताशा को दिखाता है। अंततः, उन्होंने इस पेशे को ही छोड़ने का फैसला कर लिया।
न्यायपालिका की कार्यप्रणाली पर उठाए गंभीर सवाल
दुष्यंत दवे अपनी बेबाक राय के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने हमेशा न्यायपालिका की स्वतंत्रता की वकालत की है। हालांकि, हाल के दिनों में वह काफी निराश थे। उन्होंने महसूस किया कि सुप्रीम कोर्ट उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा है। बल्कि, वह लोगों के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहा है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अदालतें अब पहले जैसी साहसी नहीं रहीं। उदाहरण के लिए, महत्वपूर्ण मामलों में सुनवाई में देरी होती है। दवे के अनुसार, यह न्याय से इनकार करने जैसा है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम प्रणाली पर भी कई बार सवाल उठाए हैं। (यह एक आंतरिक लिंक है)।
आम लोगों और संविधान के प्रति चिंता
दवे के अनुसार, अदालत का कर्तव्य संविधान की रक्षा करना है। यह आम नागरिक की आखिरी उम्मीद होती है। लेकिन वास्तव में, ऐसा होता नहीं दिख रहा है। उन्होंने कहा कि वह लोगों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए। यह उनकी सबसे बड़ी चिंता का कारण था।
उन्होंने यह भी कहा कि वे अपने ग्राहकों के साथ न्याय करने में असमर्थ महसूस कर रहे थे, जिससे उनके मन में दुख और पछतावे की भावना उत्पन्न हो गई थी।” उन्होंने कहा, “यह फैसला मेरी व्यक्तिगत विफलता को दर्शाता है।” पूरी जानकारी के लिए आप मूल लेख लाइव लॉ पर पढ़ सकते हैं। (यह एक आउटबाउंड लिंक है)।
कौन हैं दुष्यंत दवे? एक परिचय
दुष्यंत दवे देश के शीर्ष वकीलों में से एक हैं। वह सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वह हमेशा से सरकार और न्यायपालिका के मुखर आलोचक रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने कई महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामलों में बहस की है। उनका करियर काफी शानदार और प्रभावी रहा है।
वे न्यायिक जवाबदेही और पारदर्शिता के प्रबल समर्थक रहे हैं। यदि तो कोई वकील व्यवस्था पर सवाल उठाता है, तो वह दवे होते हैं। उनका पेशेवर रिकॉर्ड बेहद सम्मानित है।
इस फैसले का कानूनी जगत पर क्या असर होगा?
दवे का यह निर्णय एक बड़ी बहस छेड़ सकता है। कानूनी बिरादरी में उनकी एक खास जगह है। उनकी अनुपस्थिति निश्चित रूप से महसूस की जाएगी। उनकी आवाज को सत्ता के गलियारों में गंभीरता से सुना जाता था। इसलिए, उनका जाना एक शून्य पैदा करेगा।
यह न्यायपालिका के लिए एक आत्मनिरीक्षण का क्षण हो सकता है। यह फैसला युवा वकीलों को भी प्रभावित करेगा। अंततः, यह देखना होगा कि क्या यह न्यायपालिका में किसी सुधार की शुरुआत करता है। या यह सिर्फ एक वरिष्ठ वकील की निराशा बनकर रह जाएगा।