Sunday, June 8, 2025
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    वायुसेना पराक्रम और ‘क्लीयरेंस’ का अनसुलझा सवाल

    पृष्ठभूमि: बालाकोट की गूंज और उसके बाद का घटनाक्रम

    फरवरी 2019 में पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकी ठिकानों पर एयरस्ट्राइक की थी। इस कार्रवाई ने न केवल भारत की आतंकवाद के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को दर्शाया, बल्कि देश की सैन्य क्षमताओं का भी प्रदर्शन किया। हालांकि, इस सफल ऑपरेशन के अगले ही दिन, 27 फरवरी 2019 को, पाकिस्तानी वायुसेना ने भारतीय सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने का प्रयास किया, जिसके जवाब में दोनों देशों के वायुयानों के बीच हवा में झड़प हुई। इसी दौरान भारत का एक मिग-21 बाइसन विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उसके पायलट, विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान, पाकिस्तानी कब्जे में आ गए थे, जिन्हें बाद में रिहा किया गया।

    बालाकोट की गूंज और उसके बाद का घटनाक्रम

    विशेषज्ञों के दावे और ‘क्लीयरेंस’ का प्रश्न

    हालिया रिपोर्टों और कुछ रक्षा विशेषज्ञों की टिप्पणियों ने इस पूरे घटनाक्रम में एक नए पहलू पर बहस छेड़ दी है – क्या भारतीय वायुसेना के विमानों को पाकिस्तानी विमानों का पीछा करने या जवाबी कार्रवाई के लिए आवश्यक “स्पष्ट क्लीयरेंस” या अनुमति समय पर मिली थी? कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि संभवतः वायुसेना को उच्च स्तर से वैसी खुली छूट या ‘फ्री हैंड’ नहीं मिला था, जैसी परिस्थितियाँ मांग कर रही थीं। यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि भारत ने आधिकारिक रूप से अपने कुछ विमानों के नुकसान की पुष्टि की है, जिसमें एक मिग-21 लड़ाकू विमान और दुर्भाग्य से एक Mi-17 हेलीकॉप्टर भी शामिल है जो ‘फ्रेंडली फायर’ का शिकार हुआ।

    ‘क्लीयरेंस’ का क्या अर्थ है?

    सैन्य अभियानों में ‘क्लीयरेंस’ का अर्थ होता है उच्च कमांड या राजनीतिक नेतृत्व से विशिष्ट कार्रवाई करने की अनुमति। यह सीमा पार करने, विशिष्ट हथियारों का उपयोग करने, या जवाबी कार्रवाई के नियमों (Rules of Engagement) से संबंधित हो सकता है। यदि इस प्रक्रिया में देरी हो या अस्पष्टता हो, तो यह फील्ड कमांडरों और पायलटों के लिए भ्रम और निर्णय लेने में कठिनाई पैदा कर सकती है, खासकर जब स्थिति तेजी से बदल रही हो।

    सरकारी पक्ष और अनसुलझे पहलू

    सरकार और वायुसेना ने हमेशा अपने पायलटों के शौर्य और पेशेवर रवैये की प्रशंसा की है। आधिकारिक बयानों में पाकिस्तानी वायुसेना के प्रयासों को विफल करने और उनके एक F-16 विमान को मार गिराने का दावा भी किया गया है। (हालांकि पाकिस्तान इससे इनकार करता है)। लेकिन ‘क्लीयरेंस’ को लेकर उठे ये नए सवाल इस बात पर सोचने को मजबूर करते हैं कि क्या ऑपरेशनल स्तर पर कोई ऐसी बाधा थी जिसने हमारे पायलटों के सामने चुनौतियाँ खड़ी कीं?

    यह जानना महत्वपूर्ण है कि क्या उस दिन की परिस्थितियों में हमारे लड़ाकू विमानों को दुश्मन का पीछा करते हुए सीमा पार करने या आक्रामक जवाबी कार्रवाई करने की पूरी स्वतंत्रता थी। यदि किसी भी स्तर पर कोई हिचकिचाहट या अस्पष्ट निर्देश थे, तो यह भविष्य के लिए एक गंभीर सबक है।

    नीतिगत निहितार्थ और भविष्य की तैयारी

    इस तरह के घटनाक्रम राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा नीति के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ रखते हैं। कुछ प्रमुख बिंदु जिन पर विचार आवश्यक है:

    • निर्णय प्रक्रिया में स्पष्टता: संकट काल में त्वरित और स्पष्ट निर्णय लेने की प्रक्रिया सुनिश्चित करना।
    • संचार और समन्वय: विभिन्न कमानों और राजनीतिक नेतृत्व के बीच निर्बाध संचार।
    • तकनीकी बढ़त: अपने वायुयानों को नवीनतम तकनीक और हथियारों से लैस रखना।
    • पारदर्शिता और जवाबदेही: ऐसे संवेदनशील मामलों में उचित जांच और यदि कोई कमी पाई जाती है तो सुधारात्मक कार्रवाई।

    यह किसी पर दोषारोपण का समय नहीं, बल्कि एक परिपक्व लोकतंत्र के रूप में अपनी प्रक्रियाओं और तैयारियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करने का अवसर है। हमारे वायुवीरों का शौर्य निर्विवाद है, लेकिन व्यवस्था को भी उनके पराक्रम के अनुरूप सक्षम और सहायक होना चाहिए।

    निष्कर्ष: वीरता के साथ गहन चिंतन भी आवश्यक

    बालाकोट के बाद हुई हवाई झड़प भारतीय वायुसेना के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इसमें हमारे पायलटों ने अदम्य साहस का परिचय दिया। हालांकि, ‘क्लीयरेंस’ जैसे मुद्दों पर विशेषज्ञों द्वारा उठाए गए सवाल महत्वपूर्ण हैं। इन पर गंभीरता से विचार करना और यदि आवश्यक हो तो अपनी रणनीतियों और प्रक्रियाओं में सुधार करना, भविष्य में किसी भी संभावित संघर्ष के लिए हमारी तैयारियों को और मजबूत करेगा। राष्ट्र की सुरक्षा सर्वोपरि है और इसके लिए हर पहलू पर गहन चिंतन और सुधार एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिए।

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