Tuesday, June 17, 2025
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    Mindful Eating का कमाल

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    स्वास्थ्य विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक तकनीक ने खाने की आदतों को लेकर हमारी समझ को नई दिशा दी है। 13,000 से अधिक लोगों पर किए गए इस शोध में पाया गया कि सिर्फ ‘Mindful Eating’ यानी सचेत होकर भोजन करने की आदत अपनाने से ‘क्रेविंग’ यानी किसी खास चीज़ को खाने की तीव्र इच्छा में 36% तक की कमी आई। यह नतीजे वजन प्रबंधन और मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़े बदलाव का संकेत दे रहे हैं।

    Mindful Eating: मानसिक स्वास्थ्य और पोषण के बीच का छिपा संबंध

    नई दिल्ली: क्या सिर्फ अपने भोजन पर ध्यान केंद्रित करने से आपकी अनियंत्रित खाने की आदतें बदल सकती हैं? नॉर्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक विशाल अध्ययन का जवाब है- ‘हाँ’। यह शोध, जिसमें 13,768 लोगों ने हिस्सा लिया, इस बात की पुष्टि करता है कि चेतन खाना (Mindful Eating) कोई फैशनेबल विचार नहीं, बल्कि विज्ञान से समर्थित एक प्रभावी जीवनशैली तकनीक है। यह हमारे मन और भोजन (Mindful Eating) के बीच के रिश्ते को समझने में मदद करती है। इसे अपनाने से न केवल खाने की आदतें सुधरती हैं, बल्कि मानसिक शांति भी मिलती है।

    यह अध्ययन उन लाखों लोगों के लिए उम्मीद की किरण है जो बार-बार डाइटिंग शुरू करते हैं और छोड़ देते हैं। यह दिखाता है कि समस्या ‘क्या खाएं’ में नहीं, बल्कि ‘कैसे खाएं’ में छिपी हो सकती है।

    क्या है यह ‘माइंडफुल ईटिंग’ की तकनीक?

    माइंडफुल ईटिंग का मतलब किसी सख्त डाइट चार्ट का पालन करना नहीं है। बल्कि, यह भोजन करते समय अपनी पूरी चेतना और ध्यान को उस प्रक्रिया पर केंद्रित करने का अभ्यास है।

    इसका सीधा सा मतलब है कि आप क्या खा रहे हैं, क्यों खा रहे हैं, और खाते समय आपका शरीर कैसा महसूस कर रहा है, इस पर ध्यान देना। यह तकनीक आपको शारीरिक भूख और भावनात्मक भूख (जैसे तनाव या बोरियत में खाना) के बीच अंतर करना सिखाती है। विशेषज्ञ इसे भोजन के साथ एक स्वस्थ रिश्ता बनाने की कला मानते हैं।

    ऐतिहासिक अध्ययन: कैसे किया गया यह शोध?

    ईट राइट नाउ’ (Eat Right Now®) नामक मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से किया गया यह शोध माइंडफुल ईटिंग पर आज तक के सबसे महत्वपूर्ण अध्ययनों में से एक है।

    इस कार्यक्रम में शामिल 13,768 प्रतिभागियों को वीडियो, एनिमेशन और माइंडफुलनेस अभ्यास के माध्यम से दैनिक प्रशिक्षण दिया गया। प्रतिभागियों से नियमित रूप से अपनी क्रेविंग (खाने की तलब) और खाने के व्यवहार को लॉग करने के लिए कहा गया। यह अध्ययन किसी लैब में नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन की परिस्थितियों में किया गया, जो इसके नतीजों को और भी विश्वसनीय बनाता है।

    अध्ययन का सबसे महत्वपूर्ण नतीजा: 36% की कमी

    शोध का सबसे चौंकाने वाला निष्कर्ष यह था कि कार्यक्रम पूरा करने वाले प्रतिभागियों में क्रेविंग-संबंधी भोजन (Craving-Related Eating) में औसतन 36% की कमी दर्ज की गई। यह एक चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण आंकड़ा है, जो दिखाता है कि यह तकनीक सिर्फ मामूली नहीं, बल्कि एक बड़ा बदलाव ला सकती है।

    शोधकर्ताओं ने पाया कि लोग अक्सर एक दुष्चक्र में फंस जाते हैं: उन्हें किसी चीज की तलब होती है, वे उसे खाते हैं, फिर बुरा महसूस करते हैं, और यह भावना अगली तलब को जन्म देती है। माइंडफुलनेस इस चक्र को तोड़ने में मदद करती है।

    यह तकनीक काम कैसे करती है?

    Mindful Eating

    माइंडफुल ईटिंग दिमाग के उस हिस्से को प्रशिक्षित करती है जो आदतों को नियंत्रित करता है। जब आप सचेत होकर खाते हैं, तो आप अपनी तलब को पहचानना सीखते हैं, लेकिन उस पर तुरंत प्रतिक्रिया नहीं करते।

    उदाहरण के तौर पर, जब आपको अचानक मीठा खाने की तेज इच्छा हो, तो आप रुककर खुद से पूछते हैं – “क्या मैं सच में भूखा हूँ, या सिर्फ तनाव में हूँ?” यह छोटा सा ठहराव आदत के ऑटो-पायलट मोड को बंद कर देता है और आपको एक सचेत निर्णय लेने का मौका देता है। इससे धीरे-धीरे दिमाग का रिवॉर्ड सिस्टम बदल जाता है और अस्वास्थ्यकर चीजों के प्रति आकर्षण कम हो जाता है।

    सिर्फ क्रेविंग नहीं, समग्र स्वास्थ्य पर असर

    इस अध्ययन का महत्व सिर्फ खाने की तलब कम करने तक सीमित नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक मोटापे, बिंज ईटिंग डिसऑर्डर (Binge Eating Disorder) और टाइप-2 डायबिटीज जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के प्रबंधन में भी क्रांतिकारी साबित हो सकती है।

    जब व्यक्ति अपने शरीर के संकेतों (जैसे भूख और पेट भरने) को बेहतर ढंग से समझने लगता है, तो वह अधिक खाने से बचता है। इससे न केवल वजन नियंत्रित होता है, बल्कि भोजन से जुड़ा तनाव और अपराध बोध भी कम होता है, जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा प्लस पॉइंट है।

    मोबाइल ऐप: हर किसी की पहुंच में समाधान

    इस अध्ययन की एक और खास बात यह है कि यह समाधान एक मोबाइल ऐप के जरिए दिया गया। यह दर्शाता है कि मानसिक स्वास्थ्य और अच्छी आदतों से जुड़े प्रभावी उपकरण अब कुछ लोगों तक सीमित नहीं हैं।

    टेक्नोलॉजी की मदद से ऐसे वैज्ञानिक रूप से सिद्ध कार्यक्रम करोड़ों लोगों तक आसानी से पहुंचाए जा सकते हैं। यह स्वास्थ्य सेवा के भविष्य की एक झलक है, जहां रोकथाम और आत्म-प्रबंधन पर अधिक जोर होगा।

    भारत के लिए क्या हैं इसके मायने?

    भारत, जो आज जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों जैसे मधुमेह और मोटापे का एक बड़ा केंद्र बन चुका है, के लिए यह शोध विशेष रूप से प्रासंगिक है। हमारी पारंपरिक भोजन संस्कृति में भी धीरे-धीरे, ध्यान से और परिवार के साथ बैठकर खाने पर जोर दिया जाता था, जो एक प्रकार की माइंडफुल ईटिंग ही है।

    तेज रफ्तार जिंदगी में हम इन आदतों को भूलते जा रहे हैं। यह अध्ययन हमें अपनी जड़ों की ओर लौटने और भोजन के साथ अपने रिश्ते को फिर से स्थापित करने के लिए एक वैज्ञानिक प्रमाण देता है। यह स्कूलों, कॉरपोरेट वेलनेस कार्यक्रमों और सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियानों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन सकता है।

    निष्कर्ष: भोजन की प्लेट से आगे की सोच

    यह अध्ययन स्पष्ट रूप से स्थापित करता है कि हमारा मानसिक स्वास्थ्य और हमारी खाने की आदतें गहराई से जुड़ी हुई हैं। माइंडफुल ईटिंग एक सरल, सुलभ और शक्तिशाली उपकरण है जो हमें भोजन के साथ एक स्वस्थ और टिकाऊ संबंध बनाने में मदद कर सकता है।

    यह हमें सिखाता है कि स्वस्थ रहने की कुंजी अक्सर किसी महंगी डाइट या जिम की सदस्यता में नहीं, बल्कि हमारे अपने मन की शांति और जागरूकता में छिपी होती है। यह भोजन और मन के विज्ञान में एक रोमांचक अध्याय की शुरुआत है।

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