Saturday, July 5, 2025
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    ठाकरे बनाम ठाकरे: शिवाजी पार्क से सियासी संग्राम, निशाने पर कौन?

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    ठाकरे बनाम ठाकरे: शिवाजी पार्क से सियासी संग्राम, निशाने पर कौन?

    मुंबई: महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर ठाकरे परिवार के इर्द-गिर्द घूम रही है। राज और उद्धव ठाकरे की रैली ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। दोनों भाइयों ने अलग-अलग मंचों से अपनी ताकत दिखाई। इसके अलावा, उन्होंने एक-दूसरे पर जमकर निशाना साधा। यह टकराव सिर्फ पारिवारिक नहीं, बल्कि विचारधारा और विरासत का भी है। इसलिए, लोकसभा चुनाव से पहले यह सियासी घमासान बेहद महत्वपूर्ण हो गया है।

    गुड़ी पड़वा के अवसर पर राज ठाकरे ने शिवाजी पार्क में एक विशाल जनसभा की। वहीं, उद्धव ठाकरे ने भी अपने समर्थकों को संबोधित किया। वास्तव में, इन रैलियों ने महाराष्ट्र की राजनीति की दिशा तय करने के संकेत दिए हैं। दोनों नेता बालासाहेब ठाकरे की विरासत पर अपना दावा करते हैं। हालांकि, उनकी राहें अब पूरी तरह से अलग हो चुकी हैं।

    राज ठाकरे का मोदी को बिना शर्त समर्थन

    महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे ने एक बड़ा राजनीतिक दांव चला है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा की। यह फैसला कई लोगों के लिए चौंकाने वाला था। क्योंकि कुछ साल पहले तक राज ठाकरे, मोदी के मुखर आलोचक थे। लेकिन अब उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि उनका समर्थन केवल ‘हिंदुत्व’ और देश के विकास के लिए है।

    इस घोषणा के गहरे राजनीतिक मायने हैं। इससे महायुति (बीजेपी, शिंदे सेना, एनसीपी) को मजबूती मिल सकती है। इसके अलावा, राज ठाकरे का यह कदम मराठी वोट बैंक में सेंध लगा सकता है। यह वोट बैंक परंपरागत रूप से शिवसेना का माना जाता रहा है। राज ने अपने भाषण में साफ कहा कि राज्य का हित देश के हित से जुड़ा है।

    उद्धव पर सीधा हमला और विरासत का सवाल

    राज ठाकरे ने अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे पर तीखा हमला बोला। उन्होंने उद्धव पर बालासाहेब की विचारधारा से समझौता करने का आरोप लगाया। उदाहरण के लिए, उन्होंने कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन पर सवाल उठाए। राज का कहना था कि उद्धव ने सत्ता के लिए हिंदुत्व को छोड़ दिया।

    यह हमला सीधे तौर पर शिवसेना (UBT) के वोट बैंक को प्रभावित करने की कोशिश है। यदि राज अपने समर्थकों को महायुति के पक्ष में मोड़ने में सफल रहते हैं, तो इसका सीधा असर मुंबई और आस-पास की सीटों पर दिखेगा। अंततः, यह विरासत की लड़ाई अब चुनावी मैदान तक पहुंच गई है।

    उद्धव ठाकरे का पलटवार और बीजेपी पर निशाना

    दूसरी ओर, उद्धव ठाकरे ने भी अपनी रैली में जोरदार पलटवार किया। उन्होंने राज ठाकरे को ‘भाजपा की स्क्रिप्ट’ पर काम करने वाला बताया। उद्धव ने कहा कि उनके भाई को भाजपा एक टूल की तरह इस्तेमाल कर रही है। उनका मकसद केवल शिवसेना के वोट काटना है।

    ठाकरे बनाम ठाकरे

    उद्धव ने अपने भाषण में भावनात्मक अपील की। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी और चुनाव चिह्न चुरा लिया गया। इसके अलावा, उन्होंने समर्थकों से इस ‘धोखे’ का बदला लेने का आह्वान किया। उद्धव ने जोर देकर कहा कि असली शिवसेना वही है, जो आज भी संघर्ष कर रही है। इस लड़ाई में देवेंद्र फडणवीस की रणनीति को भी चुनौती दी गई है। (यह एक आंतरिक लिंक है)।

    त्रि-भाषा नीति और मराठी अस्मिता का मुद्दा

    उद्धव ठाकरे ने उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर भी निशाना साधा। उन्होंने त्रि-भाषा नीति को लेकर सरकार की आलोचना की। उद्धव ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार मराठी भाषा और संस्कृति को कमजोर करना चाहती है। यह मुद्दा सीधे तौर पर ‘मराठी मानुष’ की भावनाओं से जुड़ा है।

    वास्तव में, यह मराठी अस्मिता का कार्ड खेलकर उद्धव अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि उनकी लड़ाई सिर्फ सत्ता के लिए नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के स्वाभिमान के लिए है। जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बताया गया है, यह मुद्दा चुनावी माहौल को और गरमा सकता है। (यह एक आउटबाउंड लिंक है)।

    चुनावी समीकरण पर क्या होगा असर?

    अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस ठाकरे बनाम ठाकरे लड़ाई का लोकसभा चुनाव पर क्या असर होगा? राज ठाकरे के समर्थन से महायुति को मनोवैज्ञानिक बढ़त मिली है। हालांकि, यह समर्थन वोटों में कितना तब्दील होगा, यह देखना बाकी है। राज के पास भीड़ खींचने की क्षमता है, लेकिन चुनावी सफलता सीमित रही है।

    इसके विपरीत, उद्धव ठाकरे सहानुभूति कार्ड खेल रहे हैं। उनकी पार्टी में हुई टूट के बाद जनता की सहानुभूति उनके साथ हो सकती है। यदि वह मराठी अस्मिता और धोखे के मुद्दे को प्रभावी ढंग से उठाते हैं, तो महाविकास अघाड़ी (MVA) को फायदा हो सकता है। यह चुनाव अब विचारधाराओं के साथ-साथ व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का भी बन गया है।

    अंततः, महाराष्ट्र की जनता ही तय करेगी कि बालासाहेब की असली विरासत किसके पास है। यह चुनाव सिर्फ सांसदों को चुनने के लिए नहीं है। बल्कि यह ठाकरे परिवार के राजनीतिक भविष्य की दिशा भी तय करेगा। इसलिए, आने वाले दिन महाराष्ट्र की राजनीति के लिए बेहद अहम साबित होंगे।

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