पीएम मोदी का पांच देशों का दौरा, ग्लोबल साउथ पर फोकस
पीएम मोदी का विदेश दौरा जल्द शुरू हो रहा है। यह उनके तीसरे कार्यकाल की पहली बड़ी राजनयिक यात्रा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच देशों की यात्रा पर रवाना होंगे। वास्तव में, इस दौरे का मुख्य केंद्र अफ्रीका और कैरिबियन देश होंगे। यह यात्रा भारत की ‘ग्लोबल साउथ’ नीति को और मजबूती देगी। इस दौरे से वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका और बढ़ेगी।
प्रधानमंत्री की यह यात्रा कई मायनों में अहम है। विदेश मंत्रालय के अनुसार, यह दौरा कूटनीतिक संबंधों को गहरा करेगा। इसके अलावा, व्यापार और निवेश के नए रास्ते भी खुलेंगे। भारत लगातार विकासशील देशों की आवाज बन रहा है। इसलिए, यह दौरा उस दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है। यह यात्रा भारत की ‘विश्व बंधु’ की छवि को भी दर्शाती है।
यात्रा का मुख्य एजेंडा: ग्लोबल साउथ से रिश्ते मजबूत करना
इस विदेशी दौरे का प्राथमिक एजेंडा स्पष्ट है। भारत ग्लोबल साउथ के देशों के साथ अपने संबंध मजबूत करना चाहता है। यह देश विकास, व्यापार और प्रौद्योगिकी में भारत के स्वाभाविक साझेदार हैं। हालांकि, इन क्षेत्रों में अभी बहुत संभावनाएं बाकी हैं। पीएम मोदी की यात्रा इन्हीं संभावनाओं को हकीकत में बदलना चाहती है।
भारत ने अपनी G20 अध्यक्षता के दौरान भी ग्लोबल साउथ को प्राथमिकता दी थी। उदाहरण के लिए, अफ्रीकी संघ को G20 का स्थायी सदस्य बनाया गया। अब यह यात्रा उसी नीति को आगे बढ़ा रही है। इससे द्विपक्षीय सहयोग को एक नई दिशा मिलेगी। अंततः, इसका लाभ सभी साझेदार देशों को होगा।
पहले पड़ाव में घाना और त्रिनिदाद एवं टोबैगो
प्रधानमंत्री मोदी अपने दौरे की शुरुआत अफ्रीका से करेंगे। उनका पहला पड़ाव घाना होगा। इसके बाद वह कैरिबियन देश त्रिनिदाद एवं टोबैगो जाएंगे। दोनों ही देशों के साथ भारत के गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्ते हैं।
घाना: विकास और व्यापार पर होगी चर्चा
घाना में प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रपति नाना अकुफो-एडो से मुलाकात करेंगे। इस बैठक में कई अहम मुद्दों पर चर्चा होगी। इसमें विकास साझेदारी एक प्रमुख विषय होगा। इसके अलावा, व्यापार, निवेश और लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने पर भी जोर रहेगा। भारत और घाना के बीच रक्षा सहयोग भी एक महत्वपूर्ण एजेंडा है। इस कारण, यह पड़ाव काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
त्रिनिदाद एवं टोबैगो: ऊर्जा और संस्कृति पर जोर
घाना के बाद प्रधानमंत्री त्रिनिदाद एवं टोबैगो पहुंचेंगे। यहां वह प्रधानमंत्री कीथ राउली से मिलेंगे। इस देश में भारतीय मूल के लोगों की बड़ी आबादी है। इसलिए, सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना प्राथमिकता होगी। इसके अलावा, ऊर्जा सुरक्षा और डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन जैसे विषयों पर भी बातचीत होगी। यह देश कैरिबियन क्षेत्र में भारत का एक अहम साझेदार है।
इस दौरे के रणनीतिक मायने क्या हैं?
प्रधानमंत्री मोदी का यह विदेश दौरा सिर्फ द्विपक्षीय नहीं है। इसके गहरे रणनीतिक मायने भी हैं। यह उनके तीसरे कार्यकाल की विदेश नीति की दिशा तय करता है। वास्तव में, यह दुनिया को एक संदेश है। भारत अपने पड़ोस के साथ-साथ दूर के दोस्तों को भी महत्व देता है। यह दौरा चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने का भी एक प्रयास है।
इस यात्रा के माध्यम से भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को दर्शा रहा है। भारत किसी गुट का हिस्सा नहीं है। बल्कि, वह सभी के साथ मिलकर काम करना चाहता है। यदि भारत इन देशों का विश्वास जीतता है, तो वैश्विक मंचों पर उसे अधिक समर्थन मिलेगा। इस दौरे की पूरी जानकारी द हिंदू की इस रिपोर्ट में पढ़ी जा सकती है। (यह एक **आउटबाउंड लिंक** है)।
भारत की ‘ग्लोबल साउथ’ कूटनीति का विस्तार
यह यात्रा भारत की ग्लोबल साउथ कूटनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत खुद को इन देशों के विकास में एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। यह संबंध केवल व्यापार तक सीमित नहीं है। बल्कि इसमें प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, क्षमता निर्माण और शिक्षा भी शामिल है।
अंततः, पीएम मोदी का यह दौरा भारत को एक अग्रणी वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करेगा। यह ‘सबका साथ, सबका विकास’ के सिद्धांत का वैश्विक विस्तार है। भारत की विदेश नीति पर अधिक विश्लेषण के लिए, आप हमारे विदेश नीति विश्लेषण सेक्शन को पढ़ सकते हैं। (यह एक **इंटरनल लिंक** है)।