Tuesday, July 1, 2025
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    बेंजामिन नेतन्याहू का युद्ध: रणनीति या राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई?

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    इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू एक दोराहे पर खड़े हैं। उनका मौजूदा सैन्य अभियान सवालों के घेरे में है। यह अभियान अब सिर्फ एक युद्ध नहीं रह गया है। बल्कि, यह बेंजामिन नेतन्याहू के राजनीतिक भविष्य का पैमाना बन गया है। दुनिया भर की नजरें इस पर टिकी हैं। इसलिए, हर अगला कदम मध्य पूर्व की स्थिरता को प्रभावित करेगा।

    यह संघर्ष कई महीनों से जारी है। हालांकि, इसके घोषित लक्ष्य अभी भी दूर नजर आते हैं। बेंजामिन नेतन्याहू पर चौतरफा दबाव बढ़ रहा है। एक तरफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय युद्धविराम की मांग कर रहा है। वहीं दूसरी ओर, उनके अपने देश में भी मतभेद गहरे हो रहे हैं। यह स्थिति नेतन्याहू की नेतृत्व क्षमता की कठिन परीक्षा ले रही है।

    क्या युद्ध लंबा खींचने की है रणनीति?

    विश्लेषकों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि युद्ध का लंबा खिंचना महज एक संयोग नहीं है। वास्तव में, यह एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है। इसके पीछे बेंजामिन नेतन्याहू का राजनीतिक अस्तित्व छिपा हो सकता है। युद्ध समाप्त होते ही उनकी सरकार पर संकट आ सकता है। इस कारण, कई लोग मानते हैं कि वह जानबूझकर इसे लंबा खींच रहे हैं।

    उनकी सरकार अति-राष्ट्रवादी दलों के समर्थन पर टिकी है। ये दल किसी भी तरह के युद्धविराम के सख्त खिलाफ हैं। यदि बेंजामिन नेतन्याहू उनकी बात नहीं मानते हैं, तो सरकार गिर सकती है। इसके अलावा, युद्ध खत्म होने पर चुनाव की प्रबल संभावना बनेगी। सर्वेक्षणों में उनकी लोकप्रियता में भारी गिरावट देखी गई है। अंततः, युद्ध की समाप्ति उनके राजनीतिक करियर के अंत की शुरुआत हो सकती है।

    अंतरराष्ट्रीय राजनीति दबाव और अमेरिका की बदलती भूमिका

    बेंजामिन नेतन्याहू के लिए सबसे बड़ी चुनौती अंतरराष्ट्रीय मंच पर है। अमेरिका, जो इजरायल का सबसे करीबी सहयोगी है, अब धैर्य खोता दिख रहा है। अमेरिकी प्रशासन ने कई बार युद्धविराम प्रस्तावों पर जोर दिया है। हालांकि, बेंजामिन नेतन्याहू इन प्रस्तावों पर पूरी तरह सहमत नहीं हुए हैं। यह अमेरिका और इजरायल के रिश्तों में एक तनाव पैदा कर रहा है।

    उदाहरण के लिए, गाजा में मानवीय संकट एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन लगातार इजरायली हमलों की आलोचना कर रहे हैं। इन हमलों में बड़ी संख्या में आम नागरिक मारे गए हैं। इस वजह से, संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ जैसे संगठन भी इजरायल पर दबाव बना रहे हैं। बेंजामिन नेतन्याहू इस कूटनीतिक चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं।

    युद्ध क्या से सैन्य लक्ष्य हासिल हो रहे हैं?

    इजरायली सरकार ने इस युद्ध के दो मुख्य लक्ष्य बताए थे। पहला, हमास का पूरी तरह से खात्मा करना। दूसरा, सभी बंधकों को सुरक्षित वापस लाना। कई महीने बीत जाने के बाद भी ये दोनों लक्ष्य अधूरे हैं। इसलिए, सैन्य रणनीति की सफलता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।

    इजरायली सेना ने गाजा में बड़े पैमाने पर अभियान चलाया है। लेकिन, हमास की लड़ने की क्षमता अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। वह अब भी इजरायल पर हमले कर रहा है। इसके अलावा, बंधकों की रिहाई का मामला भी बेहद जटिल बना हुआ है। कुछ बंधकों को रिहा कराया गया है, पर कई अब भी हमास के कब्जे में हैं। यह स्थिति इजरायली जनता में भारी रोष पैदा कर रही है।

    बेंजामिन नेतन्याहू : इजरायल के भीतर बढ़ता आंतरिक मतभेद

    युद्ध को लेकर अब इजरायल के भीतर भी आवाजें उठने लगी हैं। बेंजामिन नेतन्याहू द्वारा गठित वॉर कैबिनेट में गहरे मतभेद सामने आ चुके हैं। पूर्व रक्षा मंत्री बेनी गैंट्ज़ जैसे प्रमुख सदस्य बेंजामिन नेतन्याहू की नीतियों से असहमत हैं। उन्होंने सरकार से बाहर निकलने की चेतावनी भी दी है। यदि ऐसा होता है, तो नेतन्याहू की सरकार और कमजोर हो जाएगी।

    इसके अलावा, बंधकों के परिवार लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका आरोप है कि सरकार बंधकों की रिहाई को प्राथमिकता नहीं दे रही है। तेल अवीव की सड़कों पर हजारों लोग हर हफ्ते इकट्ठा होते हैं। वे तत्काल युद्धविराम और बंधकों की वापसी की मांग करते हैं। इस कारण, नेतन्याहू पर घरेलू दबाव भी चरम पर है।

    “अगले दिन” की योजना का पूर्ण अभाव

    बेंजामिन नेतन्याहू

     

    इस पूरे संघर्ष में सबसे बड़ी चिंता “अगले दिन” की योजना का न होना है। यानी युद्ध खत्म होने के बाद गाजा का भविष्य क्या होगा? वहां शासन कौन करेगा? वास्तव में, इस सवाल पर नेतन्याहू और उनके सहयोगियों के बीच कोई सहमति नहीं है। अमेरिकी प्रशासन भी लगातार एक स्पष्ट योजना की मांग कर रहा है।

    योजना के अभाव का मतलब है कि गाजा में एक स्थायी शून्य पैदा हो सकता है। इसलिए, यह आशंका है कि युद्ध खत्म होने के बाद भी वहां अराजकता और हिंसा का दौर जारी रहेगा। कुछ विश्लेषक मानते हैं कि नेतन्याहू जानबूझकर इस मुद्दे को टाल रहे हैं। क्योंकि कोई भी योजना उनके गठबंधन के कुछ सहयोगियों को नाराज कर सकती है।

    बेंजामिन नेतन्याहू: भविष्य की राह, अनिश्चितता और चुनौतियां

    कुल मिलाकर, बेंजामिन नेतन्याहू का युद्ध एक ऐसे मोड़ पर है जहां से आगे का रास्ता बेहद अनिश्चित है। वह एक साथ कई मोर्चों पर लड़ रहे हैं। इनमें सैन्य, कूटनीतिक और राजनीतिक मोर्चे शामिल हैं। उनका हर फैसला न केवल इजरायल, बल्कि पूरे मध्य पूर्व क्षेत्र के भविष्य को आकार देगा।

    अंततः, सवाल यही है कि क्या नेतन्याहू देश को इस संकट से बाहर निकाल पाएंगे? या फिर उनकी राजनीतिक मजबूरियां इस संघर्ष को एक कभी न खत्म होने वाली त्रासदी में बदल देंगी? आने वाले कुछ हफ्ते इस दिशा में निर्णायक साबित हो सकते हैं। दुनिया बड़ी बेसब्री से उनके अगले कदम का इंतजार कर रही है। यह इंतजार तय करेगा कि क्षेत्र में शांति की कोई उम्मीद बचती है या नहीं।

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